ROSNI
Monday 29 August 2011
Sunday 21 August 2011
Sunday 16 May 2010
कोई कैसे औरो की तकदीर लिख सकता है
एहसास को शब्दों में पिरोकर लिखता हूँ
में ज़िन्दगी जी कर वक़्त की दास्ताँ लिखता हूँ
दीखता है जो वो हमेशा सच नहीं होता
में दिल से सच की सच्चाई देखता हूँ
कोई कैसे औरो की तकदीर लिख सकता है
में इंसान की इसे बड़ी नादानी सोचता हूँ
जज्बा मोहाबत का बस एक पल है दिलो में
निभाते है जो वफ़ा की रस्मे दीवानगी समझता हूँ
कभी ज़ख्म मिले तो तुम मायूस मत होना
गिरकर जो संभलते है लोग जीतेंगे जानता हूँ
में ज़िन्दगी जी कर वक़्त की दास्ताँ लिखता हूँ
दीखता है जो वो हमेशा सच नहीं होता
में दिल से सच की सच्चाई देखता हूँ
कोई कैसे औरो की तकदीर लिख सकता है
में इंसान की इसे बड़ी नादानी सोचता हूँ
जज्बा मोहाबत का बस एक पल है दिलो में
निभाते है जो वफ़ा की रस्मे दीवानगी समझता हूँ
कभी ज़ख्म मिले तो तुम मायूस मत होना
गिरकर जो संभलते है लोग जीतेंगे जानता हूँ
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